नई दिल्ली(12 अक्तूबर 2015)- आम आदमी पार्टी ने देश के मौजूदा हालात पर चिंता जताई है। पार्टी का मानना है कि वर्तमान हालात में प्रधानमंत्री को ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि हालात बेहतर बनाए जा सकें। पार्टी द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि आज़ादी के बाद भारत की सबसे बड़ी कमाई है लोकतंत्र। दुर्भाग्य से अब तक देश आर्थिक और व्यावसायिक क्षेत्रों में प्रथम पंक्ति में भले स्थान न ले पाया हो, लेकिन विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होना, हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है, जिसके बारे में विश्व के सबसे बड़े राष्ट्राध्यक्ष लगातार चर्चा करते रहे हैं। पूर्व में इसी लोकतंत्र की रक्षा के लिए अनेक आंदोलन समय-समय पर होते रहे हैं।
आप का मानना है कि एक बार आपातकाल के समय में जब लोकतंत्र की लौ थोड़ी डगमगाई थी तब पूरा देश इसके खिलाफ एकजुट हो गया था। उस आंदोलन के अधिकतम सेनानी वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य के मुख्यपटल पर विद्यमान हैं। दुःखद है कि इसके बावज़ूद, वैचारिक मतभेद और ‘क्या खाया जाये/ क्या न खाया जाये’, ‘किस विचारधारा की बात लिखी जाये/ न लिखी जाये’ जैसे मुद्दों पर नृशंस हत्याएं हो रही हैं। डाभोलकर, पंसारे और कलबुर्गी जैसे देश के साहित्यकारों, विद्वानों और कुलपति जैसे उच्च पद पर रह चुके वरिष्ठ ज्ञानविदों को वैचारिक मतभेद के कारण मार दिया जाना अकल्पनीय है। इससे भी ज़्यादा दुःख की बात ये है कि विभिन्न संगठनों/दलों के नेता इन हत्याओं के समर्थन या विरोध में ऐसे बयान देते हैं जो देश की अंतर्राष्ट्रीय धर्मनिरपेक्ष छवि का नुक्सान पहुँचाते हैं। चाहे वह देश के आन्तरिक मुद्दों को ‘संयुक्त राष्ट्र ले जाने’ का बयान हो या ‘मुज़फ्फरनगर दुहराने’ का बयान, राजनीतिक दलों के ज़िम्मेदार पदासीन लोगों की तरफ से ऐसे बयान निंदनीय हैं। कला, संस्कृति और शिक्षा के मानक संस्थानों के उच्च पदों पर अयोग्य और अक्षम लोगों को थोपा जा रहा है जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। इन सब से आहत कई वरिष्ठ साहित्यकार विरोध में उतर आएं हैं और विश्व भर में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 15 गणमान्य साहित्यकारों जिनमें उदय प्रकाश जी, अशोक वाजपेयी जी, गुरबचन सिंह भुल्लर जी इत्यादि शामिल हैं, ने साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस लौटा दिए हैं। ‘स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान सर्वत्र पूज्यते’ का मंत्र देने वाले भारत देश के लिए यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण एवं कष्टदायक है कि भाषा, कला एवं संस्कृति के साधकों के सामने ऐसी परिस्थिति आए।
आम आदमी पार्टी का कहना है कि इन सब मुद्दों पर प्रधानमंत्री जी की चुप्पी इस असहिष्णुता को बल दे रही है। किसी दूसरे देश के क्रिकेटर के हत होने से बेचैन हो जाने वाले और अंगोला में बम फटने की घटना से दुःखी हो जाने वाले माननीय प्रधानमंत्री जी का इन निर्मम हत्याओं पर मौन धारण करना असहज है। न केवल वो इन घटनाओं पर मौन हैं बल्कि विदेश की धरती पर जाकर ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द का मज़ाक भी उड़ा रहे हैं। इससे ऐसी हिंसक और असहिष्णु ताकतों को बल मिल रहा है जिससे पूरी दुनिया में भारत की छवि खराब हो रही है।
आम आदमी पार्टी ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि ये बात याद रखें कि कि वो भाजपा और उसके समर्थक कुछ अराजक गुटों के ही नहीं बल्कि भारत के 125 करोड़ लोगों के प्रधानमंत्री हैं। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपाई जी शीघ्र पूर्णतः स्वस्थ हों और वो प्रधानमंत्री जी को एक बार फिर राजधर्म की नसीहत दें और यह बता दें कि राजा के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं होना चाहिए।