नई दील्ली ( 11 जुलाई 2015)- जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र (जेकेएससी) संविधान में निहित अनुच्छेद 35 ए को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की तैयारी कर रहा है। जेकेएससी की माने तो आर्टिकल 35ए यहां राज्य में रह रहे पश्चिमी पाकिस्तान से आये शरणार्थी, बाल्मीकी, गोरखा सहित लाखों लोगों को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित कर रहा है। छह दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी ये न तो सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं और न ही इनके बच्चे यहां व्यावसायिक शिक्षा में दाखिला ले सकते हैं। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर का गैर स्थायी नागरिक (नॉन पी आर सी) लोकसभा में तो वोट दे सकता है, लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव में वोट नहीं दे सकता।
जेकेएससी की ओर से जारी बयान के मुताबिक़ राजधानी दिल्ली के कॉंस्टीट्यूशन क्लब में जम्मू-कश्मीर से आए अलग-अलग वर्गों से जुड़े लगभग दो दर्जन से अधिक पीड़ितों ने अपना दर्द बयां किया। पश्चिमी पाकिस्तान शरणार्थी यशपाल ने कहा कि 1947 का बंटवारा साम्प्रदायिकता के आधार पर हुआ था और उसी समय से पाक के हिन्दू जो कश्मीर आये उनको आज तक वो अधिकार नहीं मिले, जिसके वो हकदार थे। भारत का नेतृत्व शुरु से ही हमें गुमराह करता रहा जिसकी वजह से अपने ही देश में हम शरणार्थी गुलामी की जिन्दगी जी रहे हैं। वाल्मिकी समाज की ओर से अपनी बात रखते हुए मंगत राम ने कहा कि आजादी के छह दशक बाद देश कहां से कहां पहुंच गया और हम वहीं के वहीं पड़े हैं। 35A ने हमें बंधुआ मजदूर बनाकर रख दिया है। आज हमारा भविष्य सिर्फ और सिर्फ सफाई कर्मचारी बनने तक सीमित हो गया है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक विसंगतियों ने हमारे साथ भद्दा मजाक किया है। कार्यक्रम में अनुच्छेद 35A के वैधानिक पक्ष को रखते हुए जम्मू विश्वविद्यालय के विधि विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर सीमा निगरोत्रा ने बताया कि यह भारतीय सविंधान के साथ एक धोखा है। बिना संसद में लाए कोई अनुच्छेद कैसे पास हो सकता है, ऐसा धोखा 1954 में हुआ जिसका भुगतान जम्मू-कश्मीर के पीड़ित आज तक कर रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर से आई रश्मी ने बताया कि उनकी स्थिति इस तरह है कि उनके पति के पास राज्य का पीआरसी नहीं है तो शादी के बाद उनका भी स्थायी निवासी प्रमाण पत्र रद्द कर दिया गया । इस धारा 35A के अनुसार अगर जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी कर लेती है तो उसकी स्थायी निवासी प्रमाण भी रद्द हो जाता है। साथ ही उसके बच्चों के भी अधिकार समाप्त हो जाते हैं और उन्हें जम्मू-कश्मीर के सविंधान में दिया कोई भी अधिकार नहीं मिलता। रश्मी और उनके पति संजीव भी इसी स्थिति के पीड़ित हैं। उनके बच्चों को पीआरसी नहीं मिला जिसके कारण उन्हें न तो शिक्षा और न ही रोजगार मिल पा रहा है।
इस मौक़े पर जेकेएससी के निदेशक आशुतोष भटनागर का मानना था कि जम्मू-कश्मीर किसी भी अन्य राज्य की तरह भारतीय संघ का अभिन्न अंग है। वहां का प्रत्येक निवासी भारतीय नागरिक है और उसे वे सभी अधिकार हासिल हैं जो भारत के किसी भी नागरिक को हैं। संविधान का कोई भी प्रावधान उसे मौलिक अधिकार प्राप्त करने से रोक नहीं सकता। लेकिन कुछ संवैधानिक विसंगतियों की वजह से राज्य में पश्चिमी पाकिस्तान से आये शरणार्थी, बाल्मीकी, गोरखा सहित महिलाओं को उनके मौलिक अधिकार नहीं मिल रहें हैं। जिसका संवैधानिक हल खोजा जाना समय की मांग है।
इसके अलावा सीनियर एडवोकेट और पूर्व क़ानून मंत्री जगदीप धनकड़ का कहना है कि भारत के संविधान ने हर नागरिक को मौलिक अधिकार दिये हैं जो कि इसकी प्रस्तावना में निहित है, जिसे संसद भी नहीं बदल सकती। लेकिन देश के अभिन्न राज्य जम्मू-कश्मीर में कुछ ऐसे प्रावधान लागू किये गये जो भारतीय संविधान की भावना से मेल नहीं खाते। इसके कारण यहां के कुछ वर्ग उन प्रावधानों से वंचित हैं जिनका लाभ देश के अन्य नागरिक उठा रहे हैं। धारा 35ए की आड़ में इनके साथ पिछले कई दशकों से खिलवाड़ हो रहा है। हम उन लोगों से तो बात कर लेते हैं जो गोलियां चलाते हैं पर हम उन लोगों के साथ क्यों नहीं खड़े होते जो शांति से हमारे साथ हमारे देश में रह रहे हैं।