गोरखपुर (15 अगस्त 2017)- कई दिनों से सुनने में आ रहा है कि गोरखपुर के एक सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी या सरकारी अमले की लापरवाही से 60 से ज्यादा बच्चों की जान चली गई। राजनीतिज्ञ हो या अफसर हर कोई इस मामले पर बयानबाज़ी कर रहा है। हम ये क़तई नहीं कहते कि इस मुद्दे पर राजनीति या बयानबाज़ी करने से पहले जिन्होने बच्चे गंवाए हैं उनके दिल से पूछो। 2003 में हमने अपना 4 साल का हंसता खेलता बेटा गंवाया है, अपनी ज़ुबान से कोई भी बयान देना हमारी हिम्मत से बाहर की बात है।
सच्चाई यही है कि चाहे लापरवाही हो या फिर कमीशनखोरी 60 से ज्यादा मासूम, मौत की नींद सो गये। इसके लिए कोई भी सभ्य समाज ख़ुद का माफ नहीं कर सकता। इस मामले पर सियासत न की जाए तो बेहतर होगा। अफसोस यही है कि स्वास्थ मंत्री ने कथिततौर पर कहा कि अगस्त में बच्चे मरते ही हैं या फिर बीजेपी अध्यक्ष का कथिततौर पर यह कहना कि ऐसे हादसे होते रहते हैं शर्मनाक है। बतौर सीएम, आदित्यनाथ योगी की जवाबदही बनती है लेकिन हर साल होने वाली दिमागी बुखार की हज़ारों मौतों के आंकड़े पर राजनीति से ज्यादा ठोस और असरदार कार्रवाई की ज़रूरत है।
लेकिन इसी सबके दौरान कुछ इस तरह की बातें सामने आईं, जिनसे बेहद तकलीफ हुई। कहा गया कि ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी के लगभग 68 लाख रुपए बक़ाया थे, इसलिए कंपनी ने ऑक्सीजन की सप्लाई बंद कर दी। तो क्या 60 से ज्यादा मासूमों की ज़िदगी चंद लाख रुपयों से भी कमतर हो गई। सवाल ये भी है कि चुनावों से लेकर स्वच्छ भारत, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ जैसे अभियानों पर अरबों रुपए ख़र्च करने वाली सरकारों के लिए सिर्फ चंद लाख रुपए की ऑक्सीजन का भुगातन करना इतना ही मुश्किल था कि उसकी आंख 60 से ज्यादा मासूमों की मौत के बाद ही खुली।
लेकिन आज सबसे बड़ा सवाल उस चर्चा पर है, जिसमे कहा जा रहा है कि डॉ.कफील नाम के एक डॉक्टर ने रात भर भागदौड़ की और निजी तौर पर और अपने दोस्तों की मदद से न सिर्फ ऑक्सीजन मुहय्या की बल्कि बच्चों की देखरेख में पूरी मेहनत की। कहा तो यहां तक जा रहा है कि डॉक्टर कफील की कोशिशों से कई बच्चों की जान भी बचाई गई।
बेहद शर्म और अफसोस की बात है कि आज कुछ लोग उस डॉक्टर को हिंदु या मुसलमान बनाने पर तुले हैं। डॉक्टर कफील हो या डॉक्टर कपिल इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हर डॉक्टर के लिए उसका मरीज़ बतौर एक इंसान बेहद खास होता है।
हां सच्चाई ये भी है कि बतौर एक मुस्लिम भी डॉक्टर कफील ने जो कुछ किया उसके लिए किसी पर एहसान जताने या महिमा मंडित करने की कोई ज़रूरत नहीं। एक मुस्लिम जो पेशे से डॉक्टर भी है, उसके लिए इंसानियत के मायने बेहद ख़ास हो जाते हैं। उन्होने अगर रात भर जागकर या किसी से मदद से ऑक्सीजन लाकर बच्चों की मदद की है, तो उन्होने वही किया जो उनके मज़हब ने उनको हुकुम दिया और जो उनके पेशे की पहचान है।
लेकिन दो दिन बाद वही डॉक्टर कफील एक विलेन बन गये। उनके खिलाफ तरह तरह के इल्ज़ाम आने लगे। यहां भी कुछ लोग कहने लगे कि वो डॉक्टर कफील थे इसलिए फंसाया जा रहा है यदि डॉक्टर कपिले होते तो हीरो बनाए जाते। इस पर भी मेरा बेहद गंभीर और ज़ोकदार एतराज़ है। बतौर एक मुसलमान हर मोमिन को बेहद साफ और ईमानदार होना चाहिए। शरीयत और ईमान का तक़ाज़ा है दुनियां में हर मोमिन को तब तक ही मुसलमान कहा जाएगा जब तक कि उसका ईमान सलामत है। कई साल पहले डॉक्टर कफील पर रेप का इल्ज़ाम लगा बताया जा रहा है कि उसमें एफआर लग चुकी है। यानि उस में कोई दम नहीं था। इसी तरह उनके खिलाफ प्राइवेट प्रैक्टिस करने का इल्ज़ाम है, तो जहां लगभग हर सरकारी डॉक्टर यही काम कर रहा हो वहां डॉ. कफील पर ही सवाल क्यों। लेकिन नहीं अगर डॉ.कफील किसी भी अपनी ज़िम्मेदारियों से खिलवाड़ करते हैं तो उनकी जवाबदही बतौर एक डॉक्टर ही नहीं बल्कि एक मोमिन के भी बनती है।
हां सवाल इतना ज़रूर है कि अगर डॉक्टर कफील पर कोई भी गंभीर आरोप था तो वो उसी रात क्यों सामने आया, जबकि उनका रोल मौत के मुंह में जाते बच्चों के लिए अच्छा रहा हो।
वैसे डॉक्टर कफील और उनके चाहने वालों के लिए एक राहत की ख़बर ये भी है कि एसएसबी यानि सीमा सुरक्षा बल ने डॉ. कफील के फेवर में अपनी रिपोर्ट दी है। एसएसबी ने अपने मुख्यालय जो रिपोर्ट भेजी है, उसमें कहा गया है कि डॉ. कफील खुद मदद मांगने आए थे। उसके बाद एसएसबी ने अपना ट्रक दिया। इससे शहर के अलग-अलग अस्पतालों और गोदाम से ऑक्सीजन सिलेंडर लाए गए। इतना ही नहीं एसएसबी ने अपने 11 जवान भी साथ में लगाए। उधर कहा जा रहा है कि मौके पर मौजूद लोगों ने भी माना कि सिलिंडर से ऑक्सीजन सप्लाई हुई थी। बताया जा रहा है कि बीआरडी गोरखपुर में 10 अगस्त की रात को पाइपलाइन से दी जाने वाली ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित हो गई थी और रात में कुछ सिलेंडरों से दो घंटे तक ऑक्सीजन दी गई। उसके बाद एंबूबैग का सहारा भी लिया गया था। 11 अगस्त से फिर सिलेंडर की व्यवस्था हुई थी।
वैसे भी कॉलेज में 12 अगस्त को स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह और 13 अगस्त को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दौरा किया और सभी अधिकारियों, स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री तक ने कहा कि सिलिंडर से नियमित ऑक्सीजन की आपूर्ति की गई। इस वजह से ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई। चर्चा है कि इतने बड़े संकट में बालरोग विभाग के असिस्टेंट प्रफेसर और इंसेफलाइटिस वार्ड में एनएचएम के नोडल अफसर का काम कर रहे डॉ. कफील दो दिन तक मरीजों की मदद के लिए कॉलेज में काम करते रहे। जबकि सीएम के दौरे के बाद उन्हें हटा दिया गया।
हांलाकि स्वास्थ्य विभाग के कुछ अफसर सवाल उठा रहे हैं कि कफील ने हीरो बनने के लिए मदद का नाटक किया। कहा जा रहा है कि आखिर वह इतने सिलेंडर कैसे लाए?
लेकिन इन तमाम बातों से घबराने के बजाए बतौर एक डॉक्टर, डॉ. कफील को मरीज़ो के प्रति अपने समर्पण में बदलाव नहीं लाना चाहिए, और बतौर एक मोमिन अगर कोई गलती की है तो रु़दरत के इंसाफ से माफी मांगते हुए सज़ा के लिए तैयार रहना चाहिए। क्योंकि मोमिन भले ही दुनियां के क़ानून को धोखा दे सके लेकिन क़ुदरत के इंसाफ की जवाबदही से नहीं बच सकता है।