लखनऊ (29 अप्रैल 2017)- उत्तर प्रदेश की राजनीति में गायत्री प्रसाद प्रजापति का नाम जब भी आएगा तब तब शायद सियासत के गलियारों एक नारा गूजेंगा। ख़ुद तो डूबेंगे ही सनम तुमको भी ले डूबेंगे।
थोड़ा पीछे की तरफ चलते हैं। लखनऊ में यादव एंड ब्रदर्स एंक संस का एक स्टेज ड्रामा चल रहा था। उस ज़माने के टीपू यानि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लगभग रोते हुए नेता जी यानि पिता जी की शिकायत करते हुए कह रहे थे, कि ये गायत्री मेरी सुनता कब है। यानि गायत्री से नेता जी इतना प्रेम करते हैं कि बेचारा मुख्यमंत्री तक उसके लाचार है। अब प्रेम की या मजबूरी की वजह क्या है वो तो बेचारे नेता जी ही जानें कि आख़िर इस बुढ़ापे मे उनको बेटे से ज़्या किसी दूसरे से क्यों लगाव हो चला। उससे पहले भी गायत्री से जिस जिस ने प्यार जताया तब तब उसका बंटाधार हो गया। और इसी तरह नेता जी को भी गायत्री ग्रहण लग गया। बेटे ने उनको शाहजहां बना डाला और एक बार फिर औरंगज़ेब याद आ गये। अपने खून पसीने से खड़ी की हुई पार्टी में मुल्ला मुलायम सिंह यादव न सिर्फ कप्तानी से हटा दिये गये बल्कि बेटे ने उनके भाई तक को पैदल कर दिया।
लेकिन कहानी यहीं नहीं थमी। अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश चुनाव में एक डूबती हुई नय्या के सहारे पार पाने की कोशिश की। उस बेचारे को अपना सहारा बनाया जिसको खुद उसी की पार्टी के लोग पप्पू कहने से बाज़ नहीं आते। बाक़ायदा समझौता हुआ। और साइकिल को हाथ का सहारा मिल गया। टीपू न जाने किस खुशी से झूमे जा रहे थे। कुछ कह रहे थे कि राहुल का साथ पंसद है कुछ ने कहा प्रियंका का जादू है। कुछ ने कहा दोबारा गद्दी पर बैठने के ख्वाब में छोरा मस्त है। मगर ये क्या यहां भी गायत्री नाम की दीवार दो दिलों यानि हाथ और साइकिल के बीच जा खड़ी हुई। समझौते के बावजूद, गायत्री ने कथित विरोध के बावजूद अपना पर्चा न सिर्फ भर दिया बल्कि अपने ही नेता के सहयोगी कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
बात यहीं खत्म हो जाती तो बात अलग थी। अभी तो गायत्री और अखिलेश प्रेम से भी पर्दा उठना बाक़ी था।
गायत्री के खिलाफ अदालत के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश की बहादुर पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी पडी़। उसी बहादुर पुलिस को जो पिछले तीन साल ठोकरें खा रही रेप पीड़ित की फरियाद, सिर्फ इसलिए नहीं सुन रही थी कि गायत्री के खिलाफ भला कैसे पुलिस सुन सकती थी। यानि गायत्री और पुलिस प्रेम प्रसंग मे पीडिता पिसती रही।
लेकिन अदालत के आदेश के बाद एफआईआर दर्ज तो हुई मगर अखिलेश का गायत्री प्रेम न सिर्फ उनको गायत्री के लिए वोट मांगने के लिए मजबूर कर गया बल्कि सूबे के मुखिया होने के बाद भी गायत्री को गिरफ्तार करने का इशारा अखिलेश पुलिस से न कर सके। यही मुद्दा अखिलेश के सफेद कुर्ते पर एक दाग़ की तरह जीवन भर के लिए चस्पा हो गया। और अखिलेश को लेकर जनता के बीच ऐसा भ्रम पैदा हुआ कि मिस्टर क्लीन को गायत्री दाग़ भारी पड़ गया।
न ख़ुदा ही मिला न विसाले सनम। अगर अखिलेश अपने कार्यकाल की आख़िरी सांसों में हिम्मत करके गायत्री को अंदर कार देते तो शायद जनता के बीच कुछ बचा रह जाता। लेकिन गायत्री अंदर भी गये और साइकिल में पंक्चर और वादा निभाने के नाम पर बीजेपी के लिए वरदान बन कर।
बात यहीं ख़त्म नहीं हुई। कुछ ही दिन बाद गायत्री को चंद मिनट मे ज़मानत मिल गई। ताज़्जुब तो नहीं हुआ। लेकिन जज की तरफ न चाहते हुए भी उंगली उठाने का मन होने लगा।
आज ही पता चला है कि गायत्री को बेल देने वाले जज भी अपनी सेवाओं की आख़िरी बॉल पर हिट विकिट हो गये हैं। गायत्री प्रसाद प्रजापति को ज़मानत देने के तरीकों पर जांच के बाद सस्पेंड कर दिया गया है। ख़बरों के मुताबिक हाइकोर्ट की प्रशासनिक समिति ने जज महोदय को ओनिलंबित कर दिया है। दिलचस्प बात ये है कि इन जज साहब का कल ही यानि 30 अप्रैल को कार्यकाल पूरा होने वाले था। उफ्फ जाते जाते इनको भी गायत्री प्रेम भारी पड़ गया।
(लेखक आज़ाद ख़ालिद टीपी पत्रकार हैं डीडी आंखों देखीं, सहारा, इंडिया टीवी, इंडिया न्यूज़ समेत कई बड़े चैनलों में प्रमुख पदों पर कार्य कर चुके हैं।)