भड़ास पत्रकारों का एक ऐसा मंच है जहां खुलकर अपनी कहना पत्रकारों के लिए आसान है और जहां उनके दुख दर्द की बात समय समय पर की जाती रही है। इसके लिए विशुद्ध रूप से भाई यशवंत बधाई के पात्र हैं।कभी कभी इसी मंच पर पत्रकारों के साथ होने वाले अत्याचार भी सामने आते हैं। ऐसे मेंं उम्मीद यही की जाती है कि हमारे पत्रकार साथी उचित मार्गदर्शन करते हुए अपने साथ के दुख को बांटने की कोशिश करेंगे। लेकिन इस बार मेरे कुछ साथियों का पत्रकार तौसीफ हाशमी के साथ हुए मामले पर कमेंट देखकर उनसे मुखातिब होने का मन कर रहा है। तो मेरे प्रिय साथी भाई अमित, एस. साह, इमरान जी और भाई रमेश, आपके अनुसार तौसीफ हाशमी दलाल हैं और वह पत्रकार भी नहीं हैं। तो क्या आपका मत है कि उनके साथ यही होना चाहिए था। एक दरोगा उनके साथ ऐसा करे या जला कर मार दे। साथ ही पत्रकार होने का क्या पैमाना है? मैं आपसे आपके संस्थान या आपकी पत्रकारिता या आपकी शैक्षिक योग्यता के बारे में कुछ कहने का भी दुस्साहस नहीं करूंगा। आप मेरे सम्मानित साथी हो….लेकिन क्या आपके द्वारा उठाए गये सवाल उचित समय पर उठाए गये हैं? क्या आपको नहीं लगता है कि अगर तौसीफ की जगह आप होते और कोई दरोगा आपकी यह हालत करता तो आपको क्या महसूस होता? रहा सवाल भाई रमेश और अमित भाई के सवाल का… कि मुल्ला पत्रकार है तौसीफ हाशमी…. इसको लेकर न सिर्फ मुझे निजी तौर पर ऐतराज़ है बल्कि शायद पत्रकार जगत तो भी… मैंने वर्ष 2002 में सहारा के अपने कार्यकाल और इसके अलावा दूसरे कई चैनलों में काम करते हुए देशभर में काफी लोगों को नौकरी पर रखवाया…. ठीक उसी तरह जैसे मुझे किसी ने नौकरी पाने में मदद की… गाजियाबाद से जब मैनें अनुज चौधरी को सहारा में और संजय शाह इंडिया टीवी में बतौर स्ट्रिंगर रखवाया तो कभी मेरे मन .में ये सवाल नहीं आया कि ये तो पंडा है। क्योंकि मुझे भी जब किसी ने रखवाया तो वो हिंदु भाई तो था… मगर उसने मुझे कभी मुल्ला नहीं समझा। अनुज चौधरी को जब मैनें सहारा के लिए स्ट्रिगर के तौर पर रखा… तो बाद में यहां के कई लोगों ने …उनमें से कई हिंदु भाई ही थे… कहा कि ये तो हत्या के मामले में फंसा हुआ है… क्रिमनल बैक ग्राउंड का है। इतना ही नहीं जब एक बार पुलिस अनुज चौधरी को गिरफ्तार करने के लिए पीछे प़डी और इनके बेहुनाह पिता को उठा कर ले गई तो यही मुल्ला यानि मैं न सिर्फ उसके साथ खड़ा रहा। इसी तरह जब संजय शाह को इंडिया टीवी में बतौर स्ट्रिगंर रखा तो उनको लेकर कई तरह के आरोप सामने आये…मगर और जब वो एक दिन एक जगह से उहागी करते हुए बाकायदा रंगे हाथों रकम के साथ पकड़े गये तो लगा कि कहीं हमसे चूक तो नहीं हो गई। लेकिन इंडिया टीवी में वो आज भी मौजूद हैं ये दोनों मेरे लिए मेरे छोटे भाई की तरह हैं। ये लोग अपने ईमान से कह दें कि कभी उन्होने हमें या हमने उन्हे हिदुं मुसलमान की नजर से देखा है। तौसीफ हाशमी को लेकर अगर किसी को लगता है कि वो मुल्ला पत्रकार है तो इसका मतलब ये हुआ कि रमेश जी जैसे लोग तो… जल कर मरे पत्रकार जगेंद्र के मामले की लड़ाई में मुस्लिम पत्रकारों को मुल्ला कर भगा ही देते। माफ करना रमेश भाई…. अभी ऐसे दिन नहीं आए हैं…. भारत की यही तो सुंदरता है कि ईद पर रमेश खुश हो और दीवाली पर तौसीफ झूमे। रहा सवाल दलाल होने का तो आज सभी तय कर लें कि अपने अपने शहर के दलाल पत्रकारों की सूची जारी करें। भड़ास पर सबूतों के साथ सभी दलालों की सूची भेजो। लेकिन उसके बाद उन दलालों को छोड़कर जिस जिस दिन कोई दरोगा या कोई गुंड़ा किसी पत्रकार को तंग करे…. तो भाई उसके साथ खड़े हो जाना, ताकि तुम्हारा अस्तित्व भी बचा रहे। और हां ईमानदार होने के लिए बहुत बड़ा हौंसला और बहुत बड़ा दिल चाहिए। जबकि किसी दूसरे पर उंगली उठाने के लिए महज एक इशारा। हम ये भी समझ रहे हैं कि ये दर्द किस लिए है…अभी तक पत्रकारिता की आड़ में शहर में चल रही कुछ दुकानों को इस बार तौसीफ ने पूछा नहीं..अब इसकी कीमत तो तौसीफ को चुकानी पड़ेगी ही…!,
(आपका आजाद खालिद)