नई दिल्ली (21 अक्तूबर 2017)-सरकार की परिभाषा के तौर पर जनता को सुरक्षा, स्वास्थ, सड़क, मार्ग और मूलभूत सुविधाएं देने और इसके एवज़ कुछ टैक्स वसूलने की ताक़त रखने वाली संस्था को सरकार कह सकते हैं। कई प्रकार के दूसरे टैक्सों के अलावा अब सड़क पर हर रोज़ टोल के नाम पर टैक्स वसूला जाने लगा है। हर रोज़ नये रास्तों पर टोल माफिया के तौर पर राहगीरों से रक़म वसूली जाने लगी है।
हो सकता है आने वाले दिनों में फायर ब्रिगेड, सरकारी अस्पताल, पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने लेकर रेलवे की इंक्वाइरी विंडो पर भी किसी प्रकार के नये टैक्स से आपकी मुलाक़ात हो जाए तो कोई ताज्जुब नहीं। ये हमारा अंदेशा है आरोप नहीं। हमारे इस डर को सहेज कर रखना.. क्योंकि हम से पहले कभी जनता ने ये नहीं सोचा था कि गंगा के पानी को गंगा वॉटर के नाम पर बेचने वाले दौर में सड़क पर चलने के लिए टोल जैसे किसी टैक्स को भी अदा करना होगा।
बहरहाल आपकी नज़र है ख़ूब मेहनत करके कमाई करने की, और सरकारी मशीनरी की नज़र है आपकी कमाई पर..!
वैसे एक सवाल हमारे मन में है कि मेरठ से मुज़फ़्फ़रनगर और देहरादून तक जाने के लिए से सैंकड़ो साल से बनी हुई जीटी रोड जो कि शेरशाह सूरी के दौर में बनी बताई जाती है। उसी पर थोड़ा बहुत बदलाव करके नया मार्ग बना दिया गया है। न तो यहां रात को रोशनी के लिए कोई लाइट की व्यवस्था है न ही आसपास के गांवों और बस्तियों से आने वाले ट्रैफिक से बचने के लिए हाइवे पर कोई सब-वे या पुल। यकीन न आए तो मुज़फ्फ़रनगर से दिल्ली आने वाले ट्रैफिक के लिए बने बेहद ख़तरनाक चौराहे को देखा जा सकता है। साथ ही मेरठ से निकलते ही हाइवे पर आने वाले ट्रैफिक की गहमागहमी को देखा जा सकता है। सिर्फ इसी हाइवे की बात नहीं अगर आप हर उस हाइवे की बात करें जहां सुविधा के नाम पर करोडो़ं रुपए का टोल हर माह वसूला जा रहा है वहां पर मिलने वाली सुविधा और सुरक्षा को देखकर शर्म आती है कि आख़िर सरकार भी लाला की तरह जनता से क्यों व्यापार कर रही है। लखनऊ से आते समय हाइवे पर गांयो का झुंड हो या रास्ते में पड़ने वाली बस्तियों का ट्रैफिक आपकी स्पीड और लय को तोड़ने के लिए काफी हैं। सवाल यही है कि जिन सड़को पर हम हमेशा अपने परंपरागत टैक्सों की अदायगी के बाद बड़े आराम से सफर करते थे आज ऐसा क्या हो गया कि लाखों वाहनों से लाइफ टाइम रोड टैक्स वसूलने और कई प्रकार के टैक्स वसूलने के बाद भी हर टोल पर करोडों हर माह जनता को भुगतना पड़ रहा है।
वैसे सरकार का कहना है अच्छी सड़क और उसके रख-रखाव के लिए टैक्स ज़रूरी है। साथ ही सुविधा के लिए जनता को थोड़ा टैक्स का बोझ उठा लेना चाहिए। बहरहाल सरकार के इस तर्क से जनता कितनी सहमत है ये बाद की बात है। लेकिन अब तो डर यही सता रहा है कि कहीं कुछ दिनों के बाद फायर ब्रिगेड को कॉल करने के बाद एक मोटे बिल की अदायगी का सामना तो नहीं कर पड़ेगा ?