दिल्ली(20जुलाई2015)- दिल्ली पुलिस की कार्यशैली को जो लोग जानते हैं वो उसकी कार्यक्षमता को भी पहचानते हैं। देशभर में सबसे ज्यादा भीड़भाड़ और ट्रैफिक वाले दिल्ली में और शहरों के मुक़ाबले स्मूथ चलने वाले ट्रैफिक की बात हो या फिर दिल्ली में घुसते ही सीट बैल्ट बांधने और हैलमेट लगाने की बात इतना तो साफ कर ही देती है कि दिल्ली पुलिस ने वर्दी का रौब आज भी क़ायम किया है। देशभर की सियासत के उतार चढ़ाव को झेलने वाली दिल्ली पुलिस के काम करने का अंदाज़ थोड़ा अलग है। आंतकी घटनाएं हों या फिर माफिया के पनपने की बात। जिस दौर में मुबंई में अंडरवर्लड और गैंगवार चरम पर था। दिल्ली में न माफिया था न गैंगवार। अपराधी कहीं का भी हो..दिल्ली पुलिस का शिकंजा हमेशआ उस पर हावी रहा। ये अलग बात है कि चाहे इंडिया टीवी में रहा या सहारा में या किसी दूसरे चैनल में बतौर एक पत्रकार मैं कभी दिल्ली पुलिस को 100% मार्कस न दे सका। चाहे के.के पॉल का कार्यकाल हो या फिर उससे पिछले कई कमिश्नरों का चाहे लूथरा साहब की बात हो या फिर पाठक जी का दौर, हमेशा हम और हमारे तमाम साथी उनके खिलाफ माइक बंदूक की तर्ज पर ताने खड़े रहे। लेकिन उसी दिल्ली पुलिस को देखकर ये भी स्वीकारते रहे कि यार कुछ भी हो…और जगहों के मुक़ाबले दिल्ली पुलिस काम अलग ढंग से करती है। उसी दिल्ली पुलिस को कथित रूप से ठुल्ला कहा गया है। इसको लेकर दिल्ली पुलिस से ज्यादा समाज के हर तबके में चर्चा और नाराज़गी देखी जा रही है। सीनियर पत्रकार, मेरे भाई और दिल्ली के क्राइम पर काफी दिनों से नज़र रखने वाले राकेश रावत ने इस बारे में अपने जज्बात का इज़ाहर किया है। साथ ही उनका एक सवाल भी है कि आख़िर ठुल्ला है कौन? बहरहाल राकेश रावत के दिल की बात हम ज्यूं के त्यूं आप तक पेश कर रहे हैं।
हाँ में पुलिस वाला हूँ।
क्या कहा मैं ठुल्ला हूँ।
ठीक कहा ।
केले बेचने वाला भी मेरे से ज्यादा पैसा कमाता है। वो भी सिर्फ 10 घंटे काम करके क्योंकि मैं ठुल्ला हूँ।
मैं कैसा इनसान हूँ दीवाली पर लक्ष्मी पूजन तक नहीं करता
क्योंकि मैं ठुल्ला हूँ।
रक्षा बंधन पर मेरी बहन बाट जोहती रहती है और मेरी कलाई सुनी रहती है क्योंकि मैं ठुल्ला हूँ।
होली पर भी मुझे खाकी रंग ही नज़र आता है क्योंकि मैं ठुल्ला हूँ।
मैं अपने बच्चों के जन्म के वक्त हस्पताल में भी नहीं जाता क्योंकि मैं ठुल्ला हूँ।
मैं ट्रैफिक को चलता हूँ और पिटता भी हूँ क्योंकि मैं ठुल्ला हूँ।
मैं लाखों बुजर्गो की सेवा करता हूँ उनके साथ फ़ोटो खिंचवाता हूँ लेकिन अपने 70 साल के बूढ़े माँ बाप की सेवा नहीं कर पाता क्योंकि मैं ठुल्ला हूँ।
मैं रोज़ाना इलाके में स्कूल जाता हूँ लेकिन अपने बच्चों की PTM में नहीं जाता क्योंकि मैं ठुल्ला हूँ।
मैं देश की राजधानी का प्रहरी हूँ गालियाँ भी खाता हूँ और 24 घंटे काम भी करता हूँ क्योंकि मैं ठुल्ला हूँ।
मैं जनता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति भी दे देता हूँ क्योंकि मैं ठुल्ला हूँ।
मैं नागरिकों की सुरक्षा के लिए उल्लू की तरह जगता हूँ और अपने परिवार की नींद हराम करता हूँ क्योंकि मैं ठुल्ला हूँ।
मैं अपने बीमार बच्चे को हस्पताल में छोड़कर तिरंगे की आन बान शान के लिए बाटला हाउस में जाकर शहीद हो जाता हूँ क्योंकि मैं ठुल्ला हूँ।
लेकिन वो क्या हैं
जो गणतंत्र दिवस पर माँ भारती को सरेआम गाली देते है।
संविधान का मज़ाक उड़ाते है
भोली जनता को उल्लू बनाता है
जनता की खून पसीने की कमाई से अपने लोंगो में रेवडिया बांटता है। जो अराजक होकर भी माननीय है। जो जनता को बिजली चोरी की सलाह देता है जो न्यायलय का अपमान करता है। जो दूसरे के कंधे पर बन्दुक रखकर अपनी चोरी और बेईमानी छुपाना चाहता है और सारे मोमबत्ती वाले कहाँ है भाई ।
मांगने लगे हैं छाँव चिड़ियों से ।
बरगद इस कदर नंगे हो गए है।।
राकेश रावत या हम दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता हैं न समर्थक लेकिन जितने धरने प्रदर्शन और अलग अलग तरह की गतिविधियां दिल्ली में होतीं है किसी दूसरे शहर में हो जाएं तो वहां की जनता को पता लग जाएगा कि वहां पुलिस और दिल्ली पुलिक के रोल में फर्क क्या है।