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किसानों की आत्महत्या पर कृषि मंत्री के बयान पर बीजेपी की सफाई

agriculture minister radha mohan singh
नई दिल्ली(25 जुलाई 2015)- एक ही दिन पहले यानि शुक्रवार को कृषि मंत्री राधामोहन सिंह द्वारा किसानों की आत्महत्या की वजहों के बारे में दिया गया बयान तूल पकड़ता जा रहा है। इस बीजेपी के कार्यलय सचिव इंजीनियर अरुण जैन ने बाकायदा प्रेस रिलीज़ जारी करते हुए कहा है कि कृषि मंत्री द्वारा संसद में दिए गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर को अनुपयुक्त संदर्भ में तथा गलत अर्थ में पेश किया गया जो पूरी तरह से भ्रामक है। इस बारे में अरुण जैन ने तीन घटनाक्रमों का ज़िक्र किया है। सबसे पहले उन्होने याद दिलाया है कि लोकसभा में दिनांक 26 फरवरी 2013 को तत्कालीन संप्रग सरकार के कृषि मंत्री ने प्रश्न संख्या 38 के लिए भी ऐसा ही जवाब दिया था। इसके अलावा इंजीनियर अरुण जैन ने याद दिलाया है कि राज्य सभा में भी दिनांक 30 मार्च 2012 को प्रश्न संख्या 1881 के जवाब में तत्कालीन सरकार ने इसी प्रतिरूप पर जवाब दिया था। साथ ही उन्होने कहा है कि
राज्य सभा में ही दिनांक 16 अगस्त 2013 को सांसद डॉ. ज्ञान प्रकाश पिलानिया द्वारा ‘किसानों के आत्महत्या’ पर पूछे गए प्रश्न के जवाब भाग (a) से (d) में इसी तरह का उत्तर दिया है। इसके अलावा अरुण जैन ने रिलीज जारी करते हुए सफाई दी है कि मोदी सरकार द्वारा बीते एक वर्ष में उठाए गए सकारात्मक कदमों से वर्ष 2014 में किसानों की आत्महत्या में कमी आई है।
किसानों की आत्महत्या के मामले पर कृषि मंत्री के बयान की सफाई में बीजेपी का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने, उनका जीवन सुखद बनाने और उन्हें साहूकारों के चंगुल से निकालने को कई कदम उठाए हैं। मोदी सरकार ने ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ा झेल रहे किसानों की तकलीफ दूर करने के मुआजवे के नियमों में महत्वपूर्ण बदलाव किए। इसी का परिणाम है कि देश के इतिहास में पहली बार प्राकृतिक आपदा से पीडि़त उन किसानों को भी मुआवजा मिला जिनकी फसल को 33 प्रतिशत नुकसान हुआ। इससे पहले सिर्फ उन्हीं किसानों को लाभ मिलता था जिनकी 50 प्रतिशत से अधिक फसल बरबाद होती थी। मोदी सरकार ने संकट की घड़ी में किसानों का दुख बांटते हुए मुआवजे की राशि में भी 50 प्रतिशत की रिकार्ड वृद्धि की।

बीजेपी द्वारा जारी प्रेस रिलीज़ के मुताबिक इसके अलावा देश के प्रत्येक किसान के खेत को पानी पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शुरु की गई है। साथ ही किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के उपाय भी सरकार ने किए हैं। फसल की लागत और आकस्मिक जरूरत के लिए किसान को कर्ज के लिए साहूकार पर निर्भर न रहना पड़े इसके लिए चालू वित्त वर्ष में फसल ऋण का लक्ष्य 8.5 लाख करोड़ रुपये तय किया गया है। किसानों को चार प्रतिशत की ब्याज दर पर बैंकों से कर्ज मुहैया कराई जा रही है। साथ ही जिन किसानों के बैंक खाते नहीं थे, उन्हें प्रधानमंत्री जन धन योजना के माध्यम से पहली बार देश के बैंकिंग तंत्र से जोड़ा गया है। साथ ही नरेन्द्र मोदी सरकार ने गेंहूँ, धान, तिलहन इत्यादि का समर्थन मूल्य बढाकर किसानों के हित को सर्वोपरि रखते हुए उनके जीवन-स्तर को उठाने का सफल प्रयास किया है। बीजेपी का दावा है कि पूर्ववर्ती संप्रग के शासन में महंगाई तेजी से बढ़ने के कारण हाल के वर्षों में किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है। यही वजह है कि देश के अलग-अलग हिस्सों से किसानों के आत्महत्या करने की खबरें आईं हैं जो अत्यंत दुखद है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक वर्ष 2013 में देशभर में 11,772 किसानों ने आत्महत्या की। राहत की बात यह है कि मोदी सरकार द्वारा बीते एक वर्ष में उठाए गए सकारात्मक कदमों से वर्ष 2014 में किसानों की आत्महत्या में कमी आई है। एनसीआरबी के अनुसार वर्ष 2014 में 5,650 किसानों ने आत्महत्या की जो पूर्व वर्ष की तुलना में लगभग आधी है। इस तरह राजग सरकार के शुरुआती वर्ष में ही किसान आत्महत्याओं में लगभग 50 प्रतिशत की कमी आई है। मोदी सरकार किसानों की पीड़ा के प्रति पूरी तरह संवेदनशील है। बीजेपी कार्यालय की प्रेस रिलीज़ में कहा गया है कि दुर्भाग्य से कुछ समाचार माध्यमों में 24 जुलाई 2015 को कृषि मंत्री राधामोहन सिंह के संसद में एक लिखित उत्तर को अनुपयुक्त संदर्भ में रखकर गलत अर्थ में पेश किया गया है जो पूरी तरह भ्रामक है। वस्तुस्थित यह है कि कृषि मंत्रालय ने संसद के समक्ष यह जवाब राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट ‘एक्सीडेंटल डेथ एंड सुसाइड इन इंडिया-2014’ के आधार पर दिया है।

एनसीआरबी भारत के सभी राज्यों की पुलिस से आंकड़े मंगाकर हर साल यह रिपोर्ट तैयार करता है। इस तरह कितने किसानों ने आत्महत्या की और उसके क्या कारण रहे, यह जानकारी राज्यों से ही एनसीआरबी के पास आती है। इसलिए किसान आत्महत्या के कारणों को श्रेणीबद्ध करने का काम केंद्रीय कृषि मंत्रालय नहीं करता है। कृषि मंत्रालय पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के समय भी इसी फॉरमेट में जवाब देता रहा है। ऐसा ही जवाब 26-02-2013 को लोकसभा में प्रश्न संख्या 38 के लिए भी तत्कालीन संप्रग सरकार के कृषि मंत्री ने दिया था। साथ ही 30-03-2012 को राज्य सभा में प्रश्न संख्या 1881 के जवाब में भी तत्कालीन सरकार ने इसी प्रतिरूप पर जवाब दिया। राज्य सभा में ही दिनांक 16 अगस्त 2013 को सांसद डॉ. ज्ञान प्रकाश पिलानिया द्वारा ‘किसानों के आत्महत्या’ पर पूछे गए प्रश्न के जवाब भाग (a) से (d) में इसी तरह का उत्तर दिया गया था। बीजेपी का कहना है कि इस तरह समाचार माध्यमों ने वस्तुस्थिति को नजरंदाज कर मनगढ़ंत निष्कर्ष निकालने के लिए तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश किया है जो पूरी तरह अनुचित है। वास्तव में विपक्ष के कुछ नेताओं तथा समाचार माध्यमों ने बिना तथ्यों की जानकारी के जनता के बीच भ्रामकता फ़ैलाने की कोशिश में इस मुद्दे के दो महत्वपूर्ण तथ्यों को पूरी तरह से नजरंदाज कर दिया है। पहला तथ्य यह है कि किसानों की आत्महत्या में कमी आई है। दूसरा तथ्य यह है कि सरकार ने संवेदना प्रदर्शित करते हुए पहली बार किसान आत्महत्या पर एनसीआरबी की वेबसाइट पर अलग से जानकारी दी गई ताकि पारदर्शिता के साथ आंकड़े आम लोगों के समक्ष पेश किए जा सकें।

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आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। Read more

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