जैसे ही बरसात आती है या आने को होती है….. तो… मेंढकों की टर्र टर्र और अजीबोगरीब गतिविधियां बढ़ जातीं हैं…और सूखे दिनों में यही मेंढक न जाने कहां गुम हो जाते हैं….हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों की बात हो या फिर पिछले विधानसभा चुनाव….मुस्लिमों की तरक़्क़ी उनकी जान, माल, ईमान की हिफ़ाज़त के ठेकेदार नमूदार भी हुए और न जाने कहां गुम भी हो गये….उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में रातों रात पीस पार्टी और डॉक्टर अय्यूब बीजेपी से टक्कर लेने और मुसलमानों के लिए ख़ून पसीना एक करने के स्वांग के साथ जगह जगह जज़्बाती बयानात देते देखे जाते रहे। उनके साथ मुस्लिम समाज ख़ासतौर से नौजवान तबक़ा दीवाना होकर, आंख मूंद कर सुनहरे कल के सपने सजाने लगा…. लेकिन आज वही समाज और नौजवान ख़ुद को ठगा से महसूस कर रहा है….न पीस न सर्जरी…..ठीक इसी तरह आजकल बेहद गरम और बेहद जज़्बाती बयानों का गुलदस्ता लेकर कुछ लोग दौड़ भाग कर रहे हैं। इतना तो सब ठीक है….. लेकिन न तो इनका मक़सद अकेले दम पर सरकार बनाना है…. न ही इनकी इतनी हैसियत….इनके मज़बूत होने से किसको सीधा फायदा पहुंचेगा ये नतीजों के बाद साफ हो जाएगा……लेकिन चुनाव के बाद ये लोग कहां मिलेंगे…इनका स्थाी पता अभी से लेकर रख लिया जाए तो बेहतर होगा…क्योंकि कई राज्यों जहां हाल ही में चुनाव हुए हैं वहां की जनता इनके वादों के सच होने के इंतज़ार में और इनकी तलाश आज भी में है….और हां जिन भाइयों को मेरी बात बुरी लगे…फिलहाल दिन तारीख़…समय और मेरा ये लेख नोट करके रख लें….समय आने पर इसमें गुमराह करने वाली कोई भी साबित हुई तो जो सज़ा आप तय करेंगे…..मंज़ूर…!
और हां एक बात और जब तक मुस्लिम समाज ख़ुद जागरुक नहीं होगा…अपनी शिक्षा, अपने नेतृत्व और अपने रोज़गार के मार्ग को चिन्हित नहीं करेगा…नेहरु, इंदिरा, चौ. चरण सिंह, राजीव गांधी, वीपी सिंह, चंद्रशेखर और न जाने कितने नामों से उम्मीदे लगाने और उनसे शिकायतें करने के भंवर में ही फंसा रहेगा…रहा सवाल उनका जिनकी दुकान चलती ही सिर्फ जज़्बात से खिलवाड़ के बाद चलती तो वो तब भी थे और अब भी..!
(लेखक आज़ाद ख़़ालिद टीवी पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)