देहरादून(31अगस्त2015)- उत्तर प्रदेश में अफसरों के बच्चों को सरकारी स्कूलों पढ़ाए जाने के मामले जैसा मामला उत्तराखंड में खारिज हो गया है। उ.प्र उच्च न्यायालय द्वारा सरकारी अफसरो के बच्चो को सरकारी स्कूलो में दाखिला कराना अनिवार्य किये जाने के बाद उत्तराखंड में भी इस कानून को लागू कराए जाने को लेकर एक याचिका दायर की गई थी। जिसे सोमवार को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने तथ्यो के अभाव में नामंजूर कर दिया है।
काबिले गौर है किनौकरशाहो और सरकारी कर्माचारियो के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें उप्र हाईकोर्ट ने जो आदेश दिया था उसमें कहा गया कि ऐसी व्यवस्था की जाए कि अगले शिक्षा-सत्र से इस आदेश का अनुपालन सुनिश्चित हो सके। ये याचिकाकर्ता शिवकुमार पाठक की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने यह बात कही थी । इस याचिका में कहा गया कि सरकारी परिषदीय स्कूल में शिक्षकों की नियुक्ति पर नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है जिसकी वजह से अयोग्य शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है। और इसी वजह से बच्चों को उचित और स्टैंडर्ड की शिक्षा नहीं मिल पा रही है। याची का कहना था कि इस बात की फिक्र ना तो सम्बंधित विभाग के अधिकारियों को है और ना ही प्रदेश के उच्च प्रशासनिक अधिकारियों को। याचिका में कही गई बातों को आधार मानते हुए कोर्ट ने सख्ती से ये निर्देश दिया कि प्रदेश के आईपीएस-आईएएस अधिकारी और सरकारी कर्मचारी और जनप्रतिनिधि के बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाई कराना अनिवार्य कर दिया।
इसी फैसले को को लागू कराने की नीयत से याचिकर्ता अधिवक्ता शिवांगी गंगवार ने हाई कोर्ट के फैसले को उत्तराखंड में लागू करने संबंधी जनहित याचिका हाई कोर्ट में दायर की थी। सोमवार को चीफ जस्टिस केएम जोजफ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने तथ्यों के अभाव में याचिका खारिज कर दी। साथ ही याचिकर्ता अधिवक्ता शिवांगी गंगवार को तीन माह के भीतर तथ्यों के साथ याचिका दायर करने को कहा है ।