दिल्ली (25 अगस्त 2017)- दो
श में अगर आम आदमी के लिए उम्मीद की कोई आख़िरी किरन है तो वो है क़ानून। एक नहीं अनेकों बार क़ानून ने साबित किया है उसके सामने न कोई छोटा है न बड़ा। ये अलग बात है कि कई बार उसी क़ानून को लागू करने वाले कुछ लोगों का रवय्या गलत मैसेज देता नज़र आया है। नक्सलियों के हाथों फौजियों को मौत की नींद सुलाना, रेलवे ट्रैक उड़ाना, डीएम और एसएसपी तक का अपहरण करना और मौत के घाट उतारना या बेगुनाहों के साथ आतंक की वारदातों को क को क़ाबू करना और कश्मीर के आतंक से निबटने के तरीक़े सबके सामने हैं।
तलाक़ और पोलियो को लेकर सख़्त सरकारें बाबरी मस्जिद शहीद करने वालों, सुप्रीमकोर्ट के यथास्थिति बनाए रखने के आदेशों, गुजरात. मेरठ, मलियाना, मुरादाबाद जैसे दर्जनों दंगों या फिर धूम्रपान या कार सीट बैल्ट के मामले पर कितनी सख्त हैं ये भी सबके सामने है।
हालांकि जब एक महिला अपने साथ हुए रेप, अपने भाई की हत्या और इस खबर को दिखाने वाले एक पत्रकार की हत्या के मामले में 15 साल से भटक रही थी, तो देश के क़ानून ने ही डेरा सच्चा के रेपिस्ट बाबा राम रहीम को न सिर्फ यह एहसास कराया कि क़ानून सबक लिए बराबर है बल्कि उसको सलाख़ों के पीछे धकेल दिया। लेकिन ठीक उसी समय हरियाणा और पंजाब समेत दिल्ली के आसपास दंगाइयों और पत्थरबाज़ों की आगज़नी और दर्जनों लोगों को मौत के घाट उतारने वालों के खिलाफ न तो पुलिस को बंदूक की गोली याद आई न कश्मीर की कामयाब पैलेट गन।
यानि एक बार पुलिस और सरकारों को याद दिलाने की ज़रूरत है कि आपके पास लाठी भी है, बंदूक़ भी और पैलेट गन भी और आपके सामने बेगुनाह लोगों को मौत के घाट उतारने वाले आतंकी भी हैं पत्थरबाज़ भी और आगज़नी करने वाले देश के दुश्मन भी।