नई दिल्ली(13 जुलाई 2016)- अरुणाचल प्रदेश मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भले ही मोदी सरकार सकते में हो लेकिन दिल्ली की आम आदमी पार्टी को मोदी सरकार को घेरने का एक और मौका मिल गया है। आम आदमी पार्टी यानि आप द्वारा जारी एक रिलीज़ में कहा गया है कि अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने अहम फैसला सुनाते हुए केंद्र की बीजेपी सरकार को बड़ा झटका दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश में वहां की चुनी हुई सरकार को बहाल करते हुए राष्ट्रपति शासन रद्द कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले के द्वारा केंद्र सरकार को यह संदेश दिया है कि यह देश सिर्फ संविधान के अनुसार ही चलेगा।
इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी की तरफ़ से प्रेस कॉंफ्रेस का आयोजन किया गया जिसमें बोलते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि ‘पहले उत्तराखंड के राष्ट्रपति शासन के विषय में और अब अरुणाचल प्रदेश के ऐसे ही मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों से केंद्र की मोदी सरकार को तमाचा मारा है और यह संदेश दिया है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का और बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर का यह भारत देश सिर्फ संविधान के अनुसार लोकतांत्रिक तरीके से ही चलेगा ना कि किसी हिटलर की हिटलरगिरी से। आप का कहना है कि देश के संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचाते हुए केंद्र की मोदी सरकार ऐसे ही दिल्ली सरकार के कामकाज में रोज़ रोड़े अटका रही है और अपनी तमाम एजेंसियों का दुरुपयोग करते हुए आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार को ठप करने की कोशिश हर रोज़ करती है। माननीय सप्रीम कोर्ट का यह फैसला केंद्र की मोदी सरकार को एक तरह से हिदायत भी है कि संघीय ढांचे को राज्यपाल, उपराज्यपाल और अपने तोते जैसी जांच एजेंसियों से चलाना बंद करें क्योंकि यहां सिर्फ संविधान का राज ही चलेगा’।
इसी मुद्दे पर बोलते हुए आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आशुतोष ने कहा कि ‘उत्तराखंड के बाद अब अरुणाचल प्रदेश के संदर्भ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया फैसला केंद्र की मोदी सरकार के मुंह पर एक तमाचा है।उन्होने कहा कि शायद अब केंद्र की मोदी सरकार को यह एहसास होगा और वो दिल्ली सरकार के कामकाज में रोड़ा नहीं अटकाएगी और साथ ही दिल्ली के उपराज्यपाल महोदय को भी इस बात का एहसास होगा कि देश की राजधानी दिल्ली किसी हिटलरगिरी, गृहमंत्रालय या प्रधानमंत्री कार्यालय से नहीं चलेगी बल्कि संविधान और लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई दिल्ली की सरकार के माध्यम से चलेगी।