गाज़ियाबाद (28 अक्टूबर 2015)- जो स्वर्ग बनाएं धरती को, आज जरूरत है उन इंसानों की | हमारे मनोभावों के अनुरूप ही हम अपने घर, समाज, देश और सारे संसार को स्वर्ग या नरक बना सकते हैं। यह कहना है कि बाबा हरदेव सिंह महाराज का। जो संत निरंकारी मण्डल शाखा गाजियाबाद द्वारा आयोजित निरंकारी संत समागम गाजियाबाद में लोगों को संबोधित कर रहे थे। बाबा हरदेव ने दिल्ली, नोयडा, गुडगाँव, फरीदाबाद, मेरठ आदि विभिन्न स्थानों से आये श्रद्धालु भक्तों एवं अन्य प्रभुप्रेमियों को कल देर रात सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए |
संत निरंकारी मंडल गाजियाबाद के संयोजक सतीश गांधी द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज केमुताबिक इस मौक पर बाबा ने कहा कि हम मानवीय मूल्यों की कद्र करें यानि प्रेम, नम्रता, उदारता, सहनशीलता, परस्पर विश्वास के भावों के महत्व को समझें | यह सभी उत्तम भावनायें मानव के शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के लिए नितांत आवश्यक है | उन्होने कहा कि घृणा तथा ईर्ष्या जैसी नकारात्मक भावनायें केवल तनाव व हिंसा को ही मानव की ईश्वर से दूरी ने मानव को मानव से भी दूर कर रखा है | ऐसा प्रतीत होता है कि घृणा, ईर्ष्या, स्वार्थ, संकीर्णता एवं अहंकार जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों के कारण मानव ने अपनी पहचान ही खो दी है | मानव, मानव के बजाए हिंसक पशुओं की भांति व्यवहार कर रहा है | बाबा ने कहा कि मानवता के शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए हमें उन मूल्यों को महत्व देने के साथ अपनाना भी होगा, जिन्हें हम मानवीय मूल्य कहते हैं | हमें प्रेम, सदभाव, सहनशीलता तथा आपसी विश्वास से युक्त होकर इनका विकास करना होगा, इन भावों को मजबूती प्रदान करने की नितांत आवश्यकता है और हमें नकारात्मक प्रवृत्तियों जैसे घृणा, ईर्ष्या, संकीर्णता एवं अहंकार से ऊपर उठना होगा | बाबा जी ने कहा कि शोहरत और दौलत का नहीं अपितु मानवीय मूल्यों का महत्व है जो आज का इन्सान खोता जा रहा है | जो इन्सान मानवीय मूल्यों की कद्र कर लेता है वह इस जहां में और आगे भी अलौकिक आनंद प्राप्त कर लेता है | करुणा, दया, विनम्रता, सहनशीलता जैसे दिव्य गुणों से युक्त होकर जीवन व्यतीत करता है | बाबा हरदेव ने कहा कि यह तमाम सन्देश इन्सानों के लिए ही है | पशु जानवरों के लिए नहीं है | क्योंकि स्वर्ग और नर्क इन्सानों के लिए ही है | परन्तु मनुष्य के भाग्य की विडंबना है कि पाशविक प्रवृत्ति के कारण उसका स्वभाव अडियल बन जाता है और मूल्यवान शिक्षाओं को वह ग्रहण नहीं कर पाता है | इसी कारण वह ईर्ष्या व घृणा से निजात नहीं पाता और सुधरने के लिए तैयार ही नहीं होता | बाबा जी ने कहा धरती को नर्क या स्वर्ग बनाने का कार्य इन्सान का ही है | अत: जो ब्रह्मज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित हो जाते हैं, उनके मन के भाव सुंदर बन जाते हैं जिससे जीवन सुंदर बन जाता है | यहां पर यही प्रेरणा दी जाती है कि इन्सानियत के पहलुओं को उजागर करके मजबूती प्रदान की जाए जिससे मानवता की पुन: स्थापना हो सकें | बाबा ने कहा कि भौतिक आवश्यकताओं, सफलताओं व उपलब्धियों को प्राप्त करना इन्सान के लिए अवश्य महत्वपूर्ण है लेकिन इन्सानीयत और मानवीय मूल्यों का महत्व सबसे अधिक है | कामियाबियों को हासिल करके मनुष्य समझता है कि वह भर गया लेकिन वास्तव में आध्यात्मिक जागरुकता के बिना वह खाली का खाली ही रह जाता है | अत: जो मनुष्य जीवन में प्रेम, दया, करुणा जैसे दिव्य गुणों से स्वयं को संवार लेता है, निखार लेता है वह भरपूर होकर जीता है और भरपूर होकर जाता है | नहीं तो खाली हाथ आता है और हात पसारे जाता है | कबीर जी, रविदास जी, मीरा आदि सन्तों ने मानवीय मूल्यों को जीया भी और दूसरों को भी प्रेरित किया | आज भी मानव समाज इसी सन्दर्भ में उन्हें याद करता है |
अंत मे बाबा जी ने कहा कि सजग होने की आवश्यकता है | मानव जीवन एक सुनहरा अवसर है | इसे नज़रअंदाज करना भारी पड़ सकता है | क्योंकि जीवन का एक एक लम्हा, एक एक क्षण, एक एक पल मूल्यवान है | इसको उपयोगी बनाना और इसकी कद्र करनी है | इससे हमारा ही बनता बिगडता है | समय का न कुछ बनता है न कुछ बिगड़ता है | दातार, ईश्वर निरंकार का भी कुछ बनता बिगडता नहीं | परमात्मा पूर्ण है इसलिए जो व्यक्ति पूर्ण से नाता जोड़ लेता है उसे घट घट में उसी तत्व के ही दर्शन होते हैं |